(तर्ज – दिल लूटने वाले जादूगर ………)
गुरुदेव मैं तुमको खत लिखता, पर तेरा पता मालूम नहीं,
सुख लिखता दुःख भी लिखता, पर तेरा पता मालूम नहीं।
गुरुदेव मैं तुम …………।।१।।
चरणों में चढ़ाने लाता गुरु, श्रद्धा की करियाँ चुन-२ के,
कर लेता वन्दन लाखों गुरु, चरणों में तेरे झुक झुक के,
बिगड़ी मैं-२ अपनी बना लेता, पर तेरा पता मालूम नहीं।
गुरुदेव मैं तुम …………।।२।।
जीवन सफल बना लेता, तेरे पावन चरणों में आकर के,
नयनों की प्यास बुझा लेता, तेरे पावन दर्शन पाकर के,
भव जल से-२ मैं तिर जाता गुरु, पर तेरा पता मालूम नहीं।
गुरुदेव मैं तुम …………।।३।।
विपदा और दुःखिया मैं अपनी, तुझको ही सुनाता रो-रो के,
मैं शान्ति सुधा रस पी लेता, तेरे चरण कमल को धो-धो के,
संग “भक्त मंडल” भी लाता गुरु, पर तेरा पता मालूम नहीं।
गुरुदेव मैं तुम …………।।४।।
गुरुदेव मैं तुमको खत लिखता, पर तेरा पता मालूम नहीं,
सुख लिखता दुःख भी लिखता, पर तेरा पता मालूम नहीं।