(तर्ज – हिंडोळकी चाल)

सद्गुरुजी महारा, शरणे आया की लज्जा राखजो।।टंक।।
पतित उद्धारण विखरत मूणोने, आयो तुजरे पार।
अब मन बाँचित पूरो मेरा, ऐहिंज दिलकी आस जी।।१।।

काम क्रोध मद लोभ तजीने, तज दियो सब संसार।
नवपद नो एक ध्यान धरोने, पाया सगु गुण राजजी।।२।।

देश-देश में धर्म बिराजे, परचा जग विधाया।
इण कलि माहिं सुरत सरिखा, प्रगट रहया साक्षातजी।।३।।

चित्त शान्ति और कामधेनु सम, भक्त तुम्हीं सो देव।
आण धरो नै तहारीसो, करें तुम्हारी सेवाजी।।४।।

मात पिता बन्धु तुम जगमां, हितकारी गुरुवर।
राजा राज सब जन मोह, सब तुम्हीं परवारा।।५।।

आज प्रभु तुम चरण पसारो, सीधा बाँचित काज।
लक्ष्मीप्रथान तुम्हारा दरसन, मोहिन गुणका राजजी।।६।।

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